By Naren Narole
Indian Democracy, Politics, Politician & Freedom of expression
आज हमारे देश में अभिव्यक्ति की आझादी के बारे में पुनःविचार करने की आवशक्यता है। लोकतांत्रिक देश में किसे अभिव्यक्ति की आझादी कहा जायेगा इसका स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए । आज कल तो हमें अपने मत, विचार या अपने मन की बात ,लोगो के सामने कैसे रखे ये भी सोचना पड रहा है।कही हम कुछ व्यक्त करने जाए और अनजाने में कोई कानून तोड़ने के कारन गिरफ्तार हो जाए और सोचते बैठे की ऐसा क्या अलग बोल बैठे।
आपने कुछ नहीं बोलना है। पाँच साल के लिए चुनाव हुए है आप कुछ नहीं बोल सकते। पूछना है तो आओ राजनीती में और चुनाव लड़ कर दिखाओ। उनको पता है आम आदमी चुनाव नहीं लड़ सकता ,इसलिये वो बार बार बोलेंगे आओ चुनाव लड़ो। आज राजनेता खुद को राजा से कम नहीं समझ रहे है। किसी ने उनके बारे में कुछ भी नहीं बोलना चाहिये। राजनेता ये भूल गए है की उन्हें लोगों ने ही चुन कर यह पद दिया है।
राजनेता यह समझने को तैयार ही नहीं है की, समाज में सभी उनसे से सहमत ही हो ,कुछ लोग तो आप के विरोधी तो रहेंगे ही। ये बात लोकतंत्र में हमेशा रहेगी। कुछ लोग आप को अच्छा बोलेंगे तो कुछ लोग आप को बुरा भी बोलेंगे, यह समझने की परिपक्वता राजनेता में होनी चाहिए ।
राजनेता हमेशा समाज का प्रतिनिधि होता हैं। उससे अनेक अपेक्षाएं रहती है। राजनेता अगर लोकनेता होगा तो वह ये बात जरूर समजेगा। परन्तु आज राजनेता ज्यादा है ,लोकनेता ये शब्द किस के उपयोग में लाये ये सोचना पड़ेगा।
पुरे विश्व में भारत सबसे बड़ा लोकतांत्रिक(Indian Democracy) देश माना जाता है। हम अंग्रेजो की गुलामी से मुक्त हुए और हमारे यहाँ लोकतंत्र की स्थापना हुई। लोगो ने लोगो के लिए चलाया गया तंत्र याने लोकतंत्र । लोकतंत्र जहा सभी को समान हक्क मिलने चाहिए।
पर क्या हमारे भारत देश में जो लोकतंत्र चल रहा है ,क्या ये सही लोकतंत्र है। क्या इसमें सभी जनमानस का सहयोग है। क्या इस लोकतंत्र में कुछ कमी रह गयी है। क्या ये लोकतंत्र बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक के हिसाब से चल रहा है। क्या लगता है आपको। क्या हमें स्वातंत्र्य मिला है या हम अभी भी किसी की गुलामी कर रहे है। अंग्रेज तो चले गए पर क्या हम लोकतंत्र में जी रहे है ,या यह एक तरह का आंशिक लोकतंत्र है ।
हम सब लोकतंत्र में जी रहे है यह हमें कब लगता है। शायद हमें सिर्फ चुनाव के वक़्त ही लगता है। एक बार चुनाव का नतीजा आ जाये, उसके बाद ये लोकतंत्र राजतंत्र में बदल जाता है। कुछ होशियार लोगो ने ऐसा कुछ जाल बुनकर रखा है की ये लोकतंत्र कब राजतंत्र बन जाता है ये आम लोग ना समझ पाते और ना ही कुछ बोल पाते है । अभी ७० साल से ज्यादा वक़्त गुजर चूका है हमें आझादी मिले फिर भी हम उस तरह का लोकतंत्र नहीं ला पाए है जैसा की आझादी के पहले सोचा था।
हम भारतीय (Indian Democracy)एक धर्मनिरपेक्ष देश बनाएंगे ऐसा कहा गया था। धर्मनिरपेक्ष देश जिसका मतलब जहा धर्म मायने नहीं रखता। जहा सभी लोग समान नागरिक होते है। पर ऐसा तो कुछ नहीं दिख रहा। हम सभी लोगो ने मंदिर, मज़्जिद ,चर्च ,गुरुद्वारा ,बौद्धस्तुप और बहुत कुछ को लड़ाई का आखाड़ा बना के रखा है। अभी तो सब धर्म के नाम पर ही लड़ रहे है।
अल्पसंख्यक चाहते है की वो बहुसंख्यक हो जाये फिर उन्हें राज करना है। बहुसंख्यक चाहते है की अल्पसंख्यक उन्ही के हिसाब से ही रहे। यहाँ बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक ये दोनों अपने धर्म ,विचार, संस्कृति एक दूसरे के ऊपर लादना चाहते है। लेकिन कोई ये नहीं बोलता की भारत में ,भारतीय धर्म क्या है। एक भारतीय नागरिक ने भारतीय धर्म कैसे निभाना है।भारतीय धर्म क्या रहेगा और कैसे बनेगा।
हमारे यहाँ अनगिनत धर्म हो सकते है, उनको एक दूसरे के ऊपर थोपने से हम सब बर्बाद हो जायेंगे। में यह नहीं कह रहा की कोई भी अपना धर्म बदले ,या अपना धर्म छोड़े पर क्या हम अपने धर्म को अपने घर तक सिमित नहीं रख सकते है क्या ? घर के बाहर क्या हम सिर्फ भारतीय बन कर रह सकते है। और हम सभी एक समान रह सकते है क्या ?
कुछ प्रश्न हमेशा मन में आते है ,क्यों हमारा पोषक, परिधान, रहन सहन हमें किसी धर्म विशेष का बनाता हैं। क्यों कोई कपडे का रंग हमें किसी धर्म विशेष से जोड़ता है। क्यों कोई सूरज को तो कोई चाँद को अपना करीबी मानता है। क्या हम धर्म के विरोध में चाँद या सूरज को ख़त्म कर सकते है।
हम सभी को एक समान शरीर मिला हैं। किसी को भी कुछ अलग नहीं मिला है ,मतलब की ना ही किसी को सर पे सिंग मिले है, ना ही किसी को पुछ मिली है। इसका मतलब हमें अगर किसी ने बनाया है तो वो भी एक ही होगा।
हम इंसानो के लिए दुनिया इतनी बड़ी हैं ,तो दुनिया के हर कोने में ,अच्छाई और बुराई को समझने वालो ने ,तब की सामाजिक स्थिति के हिसाब से अच्छे से कैसे जीवन बिताना चाहिए यह बताया।किसे अच्छा कहेंगे और किसे बुरा कहेंगे ये समझाया। हर जगह के हालात ,पर्यावरण ,भौगोलिक ,सामाजिक परिस्थिति ,और लोगो की समझ अलग अलग थी। पर सभी ने यही बताया की हमें जिसने बनाया वो एक ही है। यही धर्म की शुरुआत हैं।
पर जब ये अलग अलग लोगो से प्रभावित लोग अपनी मातृभूमि से कही और गए और बाकी लोगो से मिले तब सब ने अपना अपना धर्म कैसे श्रेष्ठ है और दुसरो का कितना शूद्र है यही दिखने की कोशिश की। इन्ही परिस्थितियों का फायदा कुछ लोगो ने उठाया और लोगो को आपस में लडवाके ,खुद धर्म के रक्षक बन के राजा बन गये।
धर्म ये हम इंसानो ने ही बनाया है ,कोई भी भगवान् ,गॉड या अल्लाह खुद आ के बता गया ऐसा कोई भी आज साबित नहीं कर सकता है। जिनके द्वारा धर्म बताया गया वो सभी इंसान के ही रूप में थे। धर्म बतता है की हम लोगो ने कैसे जीना है। सभी धर्म में शांति अहिंसा ये सब से ऊपर आता है ऐसे बोलते है। फिर ये कोनसा धर्म है जो लोगो को मारने को कहता है ,दूसरे धर्म से नफ़रत करने को बोलता है। ये नफ़रत तो कभी भी लोकतंत्र आने नहीं देगी।
और जो इस देश पर राज करना चाहते है उन्होंने बस इसी धर्म को एक शस्त्र के समान हमेशा इस्तेमाल किया है। जिन्नाह को राज करना था, बना दिया धर्म के नाम पर देश। अभी भी यही चल रहा है। अभी भी कुछ लोग भारत देश में जिन्नाह की तरह ही ख्वाब देख रहे है। और उस ख्वाब को पूरा करने का काम कर रहे है। ये लोग कौन है जो हम पर आज भी लोकतंत्र के आड़ में राज कर रहे है। और आगे भी हमे पूरी तरह से गुलाम बनाने के ख्वाब देखते रहते है।
भारत की आझादी के पहले की राजनीती और राजनेता
आज का भारत देश (Indian Democracy) ये कही राज्यों से मिलकर बनाया गया है ,संसार में भारत देश की सीमा और स्वरुप ये निरंतर बदलता रहा है। भारत देश, ये विविधता ओं से भरा हुआ है। ये विविधता ही हमारी ताकत के साथ साथ हमारी सबसे बढ़ी कमजोरी भी है।पुरे विश्व में सिर्फ भारत देश ही ऐसा है जहा इतने सारे धर्म के लोग अब तक लोकतंत्र में जी रहे है।
अगर राजनीती और राजनेता की बात की जाये तो पहले से भारत में राजतंत्र ही था। जितने राज्य उतने राजा और उतने तरह के राजतंत्र। राजतंत्र में राजा के हिसाब से ही सब चलता था। भारतीय इतिहास में अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के राजा हुए है। वैसे तो हमारा इतिहास इतना प्राचीन है की सभी राजा और राजनीतीक तज्ञ का उल्लेख कर पाना काफी मुश्किल है।
आज के हालत में जिन राजाऔ के नाम से हमारे देश की राजनीती चलायी जाती हैं , उनमें मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम और शिवछत्रपती शिवाजी महाराज ये दोनों नाम सब से पहले आते है। प्रभु श्रीराम और शिवछत्रपती शिवाजी महाराज यह नाम भारत का हर एक नागरिक जानता है। ये दोनो ही पुरे भारत देश में हमारे भगवान का रूप पूजे जाते है।
इनका पूरा जीवन कष्टों से ही भरा है पर उन्होंने अपनी मर्यादा और अपने आदर्श कभी नहीं छोड़े। आज भी लोग रामराज्य और शिवशाही ,शिवशासन की बाते करते है। परन्तु ये दोनों ही प्रजा के राजा बने और हमेशा बने रहे। वही बाकी राजा भी रहे पर वो लोगो के नहीं उस राज्य के ही राजा रहे।
मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम
प्रभु श्रीराम ,इनको सर्वश्रेष्ठ पुरुष जैसे की पुरुषोत्तम , सर्वश्रेष्ठ राजा कहा गया है। ऐसा इसलिए नहीं की वो राजा थे उन्होंने जीवन के सभी सुखो का लाभ लिया हो, अपितु उनका जीवन पूरा कष्टों से कठिनाईओ से भरा हुआ था परन्तु वो किसी भी परिस्थिति में लडखडाये नहीं सभी कठिनाईओ का उन्होंने हस कर सामना किया, और प्रजा के राजा का धर्म सबसे ऊपर रखा।
जैसे ही प्रभु श्रीराम का राजा बनने का समय आया तो पिता का वचन निभाने वनवास जाना पढ़ा। १४ वर्ष का वनवास था, यह कोई जंगल में मौज मस्ती , सहल या पिकनिक नहीं था की कुछ दिन गुजार लिये जाय और जब लगे तब अपने घर वापस आ जाए । वहा भी अपनी धर्मपत्नी सीता का रावण द्वारा अपहरण होने पे उन्हें ढूंढते हुए लंका तक जा के रावण से लड़ के उसका वध कर के हमारी सीता माता को छुड़ा के लाये।
अपनी पत्नी पर पूर्ण विश्वास होने के बावजूद लोगो के लिए सीता माता से अग्निपरीक्षा ली और अपनी पत्नी को पवित्र साबित किया। रामराज्य में जनता के मन में उनकी महारानी के बारे में शक की स्थिति या आपत्ति उठाये जाने पे अपनी गर्भवती पत्नी का त्याग कर दिया।
अपने पत्नी और पुत्रो के सिवाय उन्होंने अपना जीवन प्रजा के लिए समर्पित कर दिया।आगे पुत्र मिले तो पत्नी ने समाधी ले ली। तो बताईये रामराज्य में प्रभु श्रीराम सुखमय जीवन जी रहे थे क्या ? आज ऐसे कितने राजनेता होंगे जो थोड़ा सा भी प्रभु श्री राम के आदर्शो पे चलते होंगे।
शिवछत्रपती शिवाजी महाराज
शिव छत्रपत्ति शिवाजी महाराज के जन्म के समय पुरे भारत में ज्यादातर मुघल या निजाम या अन्य मुस्लिम शासक का शासन था। शासक बाहरी थे तो यहाँ की प्रजा के लिए जीवन जैसे जिंदगी भर की गुलामी , अन्याय और अपमान से भरा हुआ था। शिवाजी महाराज ने ये सब बचपन से ही बहुत करीब से देखा। जिजामाता ने उन्हें बचपन से ही अपनी मातृभूमि और प्रजा के लिए स्वराज्य स्थापन करने के लिए प्रेरित किया।
शिव छत्रपत्ति शिवाजी महाराज ने किसी धर्म विशेष से लड़ाई नहीं की उन्होंने अन्याय के विरुद्ध लड़ाई की। शिव छत्रपत्ति शिवाजी महाराज ने मुघलो से लड़ कर स्वराज्य प्रस्थापित किया। स्वराज्य में सभी धर्म के लोगो को उचित, समान ,मान सम्मान दिया। जो निर्बल है ,फिर किसी भी समाज या धर्म विशेष के हो , उन्हें सुरक्षा प्रदान की।
छत्रपत्ति शिवाजी महाराज के लष्कर में मुस्लिम समुदाय के भी कही सरदार थे और उन्ह सरदारों ने भी स्वराज के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी। छत्रपत्ति शिवाजी महाराज ने मंदिर भी बनाया तो मज़्ज़िद्द भी बनाके दिये । अफजल खान को मारा तो उनके धार्मिक रीतिरिवाज से उनका अंतिमसंस्कार भी किया और उसकी समाधी भी बनाई। ये सब एक प्रजारक्षक राजा के गुन हमारे अभी के राज नेता कभी भी आत्मसात नहीं कर सकते।
प्रभु श्रीराम एक ही थे ,दुबारा नहीं हो सकते। शिव छत्रपत्ति शिवाजी महाराज भी सिर्फ एक ही थे दूसरा कोई नहीं बन सकता। उसी तरह शिवशासन या रामराज्य दुबारा नहीं आ सकता। श्री राम के समय तो दूसरा धर्म भी शायद अस्तित्व में नहीं होगा। परन्तु शिवाजी महाराज के समय अन्य धर्म भी थे फिर भी उन्होंने ऐसा राजधर्म दिखाया की सारी प्रजा के लिए वो भगवान् ही बन गये।
अगर प्रभु श्रीराम हमारे भगवान् है तो शिवछत्रपत्ति शिवाजी महाराज भी हमारे लिए भगवान ही है । उनकी लगाई स्वराज की लगन ने ही भारत को, भारत के हिन्दू सर्वधर्म समभाव को बचा के रखा। आज राजनेता ,प्रभु श्रीराम और शिवछत्रपत्ति शिवाजी महाराज का नाम ले के राजनीती करते है पर उनके जैसा त्याग और साहस कितना प्रतिशत इन राजनेताओ में हैं यह भी खोज का विषय हो सकता है ।
भारत की आझादी के बाद की राजनीती और राजनेता
आझादी के पहले देश के लिए जिन्होंने काम किये उन्ही मे से कुछ ही लोग राजनेता बने। आझादी के बाद बोलने के लिए तो लोकतंत्र था। चुनाव हुए और नेतागण राजनेता बन गए। सब कुछ नया था तो होशियार लोगो ने ऐसे कुछ कार्य किये जो अक्सर राजा लोग ही करते थे। लोग समझ न सके ऐसे कुछ निर्णय ले के ,अपने हिसाब से अपने हित की ही बाते लोगो को बतायी गयी जिससे लोगो को लगे की सुशासन चल रहा है।
शिक्षा तो देनी है पर ऐसी शिक्षा दो जो लोगो को गुलाम बनाये रखे ,रोजगार उतना ही दो जो हर साल धीरे धीरे बढ़ता दिखे। लोगो को जाती धर्म के नाम पर बाट कर रखो जिससे वो आपस में ही उलझे रहे। हमारी प्राचीन शिक्षा पद्धति ,चिकिस्ता पद्धति हमारी संस्कृति और हमारा सदभाव,जो भी उसका पालन करता है वो पिछड़ा है उसे हीन भावना से ग्रसित कर दिया गया और समाज में विभाजन कर के खुद राजनेता बन गए।
आझादी के बाद देशभक्ति और लोकनेता ये सब सिर्फ किताबी बाते हो गयी है। अभी नेता गिरी भी एक उद्योग है या नौकरी बोल सकते है। एक बार चुन कर आ जाओ जीवन सफल हो जायेगा। इस नौकरी में सब से ज्यादा सुविधाय और पेंशन मिलती है। और अगर आप अच्छे से तालमेल बिठा पाए तो आपकी आनेवाली पीढ़िया भी ये जॉब चालू रख सकती है।
हम इन नेताओ के गुलाम बन गए है। ये सब मिलकर सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए काम कर रहे है। कोई भी राजनितिक गट हो वो सिर्फ अपने फायदे के ही योजनाओं को क्रियान्वित करता है।आज ७० साल बाद भी कोई समानता की बात नहीं करता। हर जगह विषमता या असमानता ने स्थिति को विकराल बनाया हुवा है।
आज राजनेता ,प्रभु श्रीराम और शिवछत्रपत्ति शिवाजी महाराज का नाम ले के राजनीती करते है ,और खुद को भी उन्ही के समतल में ही समझते है। आप इन् राजनेता को कुछ कहो तो इनके मन को ढेस लग जाती है और जनता में ऐसा कुछ करते है जैसे की किसी ने उनको नहीं जैसे प्रभु श्रीराम और शिवछत्रपत्ति शिवाजी महाराज को ही पूछ लिया हो ,या अपमान कर दिया हो।
क्या ये राजनेता प्रभु श्रीराम और शिवछत्रपत्ति शिवाजी महाराज जैसे निष्पक्ष रह कर काम कर सकते है। अपना स्वार्थ छोड़ कर जनसेवा कर सकते है। यहाँ तो मेरी खुर्ची और मेरा परिवार ही सर्वोपरि है। शिवाजी महाराज ने एक एक किल्ला ले के स्वराज बनाया था ,आज तो इन्हे बिना कुछ कर के दिखाए ही सत्ता चाहिए। ये कब तक चलेगा। आगे आने वाले ब्लॉग में पढ़े की राजनेता क्या क्या कर रहे है और लोकतंत्र (Indian Democracy) कैसे हमसे दूर होते जा रहा है।
यहाँ जो भी लिखा गया है वो ना ही किसी धर्म विशेष के बारे में है और ना ही किसी राजनितिक दल के लिए है। यह पूरी तरह से भारतीय जनमानस के लिए एक बहुत बड़ा प्रश्न है। यह प्रश्न पूछने से किसी की भावना अगर आहत होती है या किसी के मन को ठेस लगती है तो हम क्षमा करे। …