By Naren Narole
इस ब्लॉग में जो कुछ भी लिखा गया है, वह किसी व्यक्ति, जाति, धर्म या किसी राजनीतिक दल के खिलाफ नहीं है। यह मुख्य रूप से उन कई सवालों में से एक है जिसका सामना हम भारतीय करते हैं। जो सभी देशवासियों के मन या मस्तिष्क को हिला देता है। मकर संक्रांति जैसे ख़ुशी के पर्व में हम सब कुछ बाते भूल जाते है। पंतग बाजी कर के हम सब लोग अपनी ख़ुशी का इजहार करते है। पर यही शौक किसी के जान पर बन आता है तब काफी दुख देके जाता है। हम सभी ने सभी की ख़ुशी की फ़िक्र करनी चाहिए। संक्रांति में होने वाले हादसों के ऊपर यह ब्लॉग पोस्ट किया है। हमें अपनी जिम्मेदारी समझनी होंगी तब ही हम ऐसे हादसे को रोक सकते है। यदि हम ने किसी की , किसी भी तरह से, भावना को आहात किया होगा, जो हम नहीं करना चाहते हैं, तो हम इसके लिए माफी चाहते हैं।
Happy Makar-Sankranti -Enjoy but keep LIFE intact
आज के दिन की मेरी शुरुआत न्यूज़ पेपर के साथ हुई। जैसे ही मैंने नागपुर की खबरों के तरफ रुख किया मेरे दिल ने जोर से धड़कना चालू किया। खबर जो में पढ़ रहा था, वो यह थी की एक २० साल के लडके का बीच सड़क नायलॉन मांजे से गला कटा। लड़का परिवार में इकलौत था। अपने पिता ओर बड़े चाचा के साथ छोटी बहन की एडमिशन के लिए किसी नर्सिंग कॉलेज गया था। एडमिशन का काम होने के बाद पिता ने उसे घर जाने के लिए कहा। जाते वक़्त लडके ने अपना मोबाइल छोटी बहन को दिया था। बाइक से जाते वक़्त रास्ते में उसके गले में मांजा फस गया। लडके ने तुरंत अपनी बाइक रोकी और गले में उलझे मांजे को वो निकालने का प्रयास कर रहा था। मांजा शायद पुरे रस्ते के दोनों छोर पर था। उसी दौरान दूसरे वाहन ,जो की उसी रास्ते से गुजर रहे थे ,मांजा उनमे भी फस गया था। मांजा खींचते चला गया और तब तक लड़का अपने गले से नायलॉन का मांजा नहीं निकाल पाया था। जैसे जैसे दूसरा वाहन आगे जाता गया लडके का गला कटते गया।
हम जैसे ही ऐसा कुछ पढ़ते है तो हम अपने शरीर में कुछ महसूस करने लगते है, जैसे की हम ही उस लडके के जगह हो। मेरा हाथ अपने आप मेरे गले के तरफ गया। न्यूज़ के मुताबिक जब वो लड़का रस्ते में ,गला कटने से गिरा ,लोगो की भीड़ जमा हुई थी, तभी उसके पिता ओर बहन उसी रास्ते से गए थे । पर हमेशा की तरह जैसे हम रास्ते की भीड़ और शोर शराबे से दूर रहना चाहते थे, उसी तरह पिता और उसकी बहन ने भीड़ को नजरअंदाज किया और जल्दी से घर पुहच गए थे। उन्हें क्या पता था जैसा दुसरो के बारे में न्यूज़ पेपर में पढ़ते है वैसा ही आज उनके साथ भी हो ने जा रहा था।
ऐसा ही हादसा मेरे साथ हुआ था। में और मेरी माँ ,मार्केट से घर आ रहे थे। माँ मेरी बाईक (मोटर साइकिल) पर थी ,इसलिए बाईक की गति भी हमेशा से कम थी। जैसे ही में रेशिमबाग चौक के तरफ बढ़ रहा था, अचानक से मुझे सामने मांजा दिखा था। मैंने जोर से दोनों ब्रेक मारे थे। ब्रेक मारने से मेरी माँ बाईक से गिर गई थी। वो घुटनो के बल गिरी थी,पर में माँ को संभाल नहीं पाया था। मांजा मेरे गले के काफी नजदीक था। मेरे हाथ बाईक के हैंडल से गले तक जाने तक मेरा गला हलका सा कट गया था। मैंने वो मांजा दोनों हातो से पकड़ा हुआ था। बाईक पर में पैरो के सहारे खड़ा ही था। तभी रस्ते के दूसरे हिस्से से एक आदमी उसी मांजे को खींच रहा था। उस के वजह से मेरी उंगली भी कट गयी थी। वो नायलॉन का मांजा था जो टूट भी नहीं रहा था।
भगवान् का ही शुक्रिया मानना पड़ेगा की तब दोपहर के वक़्त रास्ते पर और कोई बड़ा वाहन नहीं आया था । नहीं तो में और मेरी माँ हम दोनों आज फोटो में ही होते। मैंने मांजे को निकला और बाईक को छोड़ अपनी माँ को उठाया ,और रस्ते के बाजू में खड़े हो कर माँ को पूछा की कितना लगा है। शुक्र था की माँ को ज्यादा चोट नहीं आई थी ,हो सकता है की अंदुरुनी चोट आयी हो। मेरे गले से खून निकल रहा था तो मैंने मेरा रुमाल गले में लगा लिया था। मैंने फिर से बाईक उठाई ,हेलमेट लगाया और माँ के साथ घर आ गया था। मेरी चोट ज्यादा नहीं थी पर गले के जख्म में बहुत जलन हो रही थी। सात दिन में मेरा जख्म भर गया था।
.
जो मेरे साथ हुआ था वही मेरी आँखों के सामने आ गया। उस लडके ने हेलमेट पहना था की नहीं यह नहीं पता ,पर जब मेरे साथ ये हादसा हुआ तब मैंने हेलमेट पहने के बावजूद मांजा मेरे गले तक पुहच गया था। नायलॉन का मांजा ,आप हाथ से तोड़ नहीं सकते है। ऐसे वक़्त सब कुछ इतने जल्दी होता है की आप समझ ही नहीं सकते की आपको क्या करना है। संक्रांति पर्व से एक महीने पहले से , याने दिसंबर से जनवरी ख़त्म होने तक लोग ज्यादा पतंग उड़ाते है। पतंग उड़ाना चाहिए पर खुद की और दुसरो की सुरक्षा का ध्यान रख कर। कितने छोटे बच्चे अपनी जान कुछ रुपए की पतंग पर खो देते है। ज्यादा तर पालक देखते ही नहीं की उनका बच्चा पतंग के लिए कहा खा तक दौड़ लगा रहा है। एक बार का पतंग उड़ने का शौक मान भी लेंगे ,पर ये नायलॉन के मांजे का इस्तेमाल क्यों करते है यह समझ नहीं आता है । सभी मेरी तरह खुशकिस्मत निकालेंगे यह जरूरी नहीं। आज किसी और के बच्चे की जान गयी है कल हमारा नंबर भी लग सकता है।
सभी लोगो से विनंती है ,संक्रांति मनाईये पतंग भी उड़ाईये पर सिर्फ एक दिन। बच्चो को समझाईये की सिर्फ एक दिन पतंग उड़ानी है। नायलॉन का मांजा पूरी तरह से बंद कर दीजिये। बच्चो को अपनी जान का ख्याल रखना सिखाये। उन्हें ऐसे अपघातो के बारे में बताईये उन्हें जो अपघात के दृष्य है वो दिखाए जिससे वो खतरे को समझ सखे। बच्चे अगर समझने लायक नहीं है तो उन्हें सिर्फ आपके सामने ही पतंग उड़ाने को कहे। आप खुद पतंग उड़ाके उन्हें दे आप भी एक दिन मजे करे और बच्चो को भी कराये। पर जैसे ही संक्रांत का दिन ख़त्म हो जाए ,पतंग और मांजा को आप नष्ट कर दे। अगले साल फिर से नई सामग्री ले और संक्रांति में पतंग उड़ने का आनंद ले जिससे लोगो का रोजगार भी चलते रहे।
जिन्हे पतंग के मांजा का डर होगा उनको अपना ख्याल खुद रखना होगा। क्योंकि हम कितना भी बोले पर हम भारतीयों में एक आदत है ,जब तक खुद पर नहीं आती तब तक हम दुसरो को बेवक़ूफ़ या कमजोर ही समझते है।कुछ लोग पतंग उड़ाने में ,जोर जोर से चिल्लाने में ,पतंग के लिए झगड़े करने में मर्दानगी समझते है। ऐसे पढ़े लिखे गवार तो लाखो में होंगे। इसलिए अगर आप दो पहिये के वाहन चला रहे है तो ,वाहन की गति धीमी रखे ,हेलमेट का इस्तेमाल करे ,गले में गमछा या अच्छा सा दुपट्टा लगाए। छोटे बच्चो को गाडी के सामने वाले हिस्से में न बिठाए। हो सके तो ऐसे दिनों में ,छोटे बच्चो और बड़े बुजुर्ग को दूचाकी वाहन पर कही ना ले के जाए।