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Sorry ,We couldn't save you...

By Naren Narole

इस ब्लॉग में जो कुछ भी लिखा गया है, वह किसी व्यक्ति, जाति, धर्म या किसी राजनीतिक दल के खिलाफ नहीं है। यह मुख्य रूप से उन कई सवालों में से एक है जिसका सामना हम भारतीय करते हैं। जो सभी देशवासियों के मन या मस्तिष्क को हिला देता है। 

भंडारा गवर्नमेंट अस्पताल में दस नवजात शिशु की दर्दनाक मृत्यु ,जिनके इस दुनिया में  आने से  सभी को ख़ुशी मिली थी ,वो ख़ुशी हमारी गलती से मातम में बदल गई है।

 फिर से हमने बनाया हुआ लोकतंत्र आज फेल हुआ। हम फिर से अपने बच्चो को नहीं बचा पाए। उन सभी बच्चो से हम माफ़ी मांगना चाहते है। हमें क्षमा करें।ये ब्लॉग उनको याद करने और हम सभी किस तरह असफल हुए यह महसूस करने के लिए लिखा गया है। 

हमें अपनी जिम्मेदारी समझनी होंगी तब ही हम ऐसे हादसे को रोक सकते है। यदि हम ने किसी की , किसी भी तरह से, भावना को  आहात  किया होगा, जो हम नहीं करना चाहते हैं, तो हम इसके लिए माफी मांगते हैं।

बच्चो ,हमें माफ़ करे

हम सब के लिए एक दुखद खबर ,महाराष्ट्र के भंडारा जिल्हा अस्पताल में शुक्रवार – शनिवार के दरमियानी रात में करीब डेढ़ बजे  सीक न्यू बोर्न केयर यूनिट (SNCU ) में अचनाक आग लग गई। इस हादसे में १० नवजात शिशुओ की  दर्दनाक मौत हो गई।

 तीन बच्चो की आग  से  झुलसकर तो सात  बच्चो की दम घुटने से मौत हुई ,ऐसा प्राथमिक जाँच में सामने आया है। खबर है की मरने वाले  नवजात शिशुओ में आठ लडकियां  और दो लडके थे। सात नवजातों को बचा लिया गया। इस हादसे में दो महिला स्वास्थ  कर्मचारी भी गंभीर रूप से घायल हो गई है। इस हादसे की वजह फीलहाल  शार्ट सर्किट मानी जा रही है।

 

ऐसे अपघात  हमारे देश भर कई बार हो चुके है। जीवन की हानि के लिए सभी लोग दुःख व्यक्त करते है। अभी कुछ समय पहले ही गुजरात में आग की घटनाओं को देखने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अस्पताल में आग के सुरक्षा के इंतजाम और अग्निशमन अधिकारी  होने चाहिए ऐसा निर्देश दिया था।

राज्य सरकार सभी अस्पताल का फायर ऑडिट करे और उचित कारवाई  करे ऐसा सुप्रीम कोर्ट ने कहा था। परंतु हमारे यहाँ सरकार के ऊपर काम का इतना बोझ है की, जब तक आम लोगो की जान नहीं जाती तब तक किसी की  ऐसे दिशा निर्देश की तरफ धान नहीं जाता है। 

अब सभी दिशा निर्देश दे दिए गए है।दोषियों के ऊपर बड़ी कार्रवाई होगी ऐसा कहा गया है। राज्य के सभी अस्पतालों का फायर ऑडिट किये जाने का भी निर्देश दे दिए गए है। राज्य और देश के सभी राजनेताओं ने इस दुर्घटना के लिए दुःख और पीड़ितों के लिए  सवेंदना  व्यक्त की है। 

राज्य सरकार के स्वास्थ मंत्री  ने मृत बच्चो के परिजन को पाँच – पाँच लाख रुपए  मुआवजे की घोषणा की है। विपक्ष के राजनेताओं ने कहा है की अस्पताल के लिए अग्निशामक यंत्र का प्रस्ताव दिया गया था जो की सरकार की ओर  मंजूर नहीं किया गया था।  

अभी फिर से इस  हादसे के ऊपर राजनीती होगी। विपक्ष सरकार को दोषी ठहराएगी। वैसे हर  विपक्ष का यही काम  होता है। यही विपक्ष जब सत्ता में  होता है तब वो भी वही करते है जो ये सरकार कर रही है। 

जिस माँ ने नौ महीने बच्चे को अपने कोख में पाला उसका दर्द सिर्फ एक माँ ही समझ सकती है। पर जैसे हमें पता है ,आम लोगो के दुःख  भी  आम ही होते है। माता पिता अपने बच्चो के लिए क्या क्या नहीं करते है। माता पिता खुद मर जाना पसंद करेंगे अपने बच्चो को बचाने के लिए। फिर माता पिता अमीर हो या गरीब हो। जो रिश्ता माँ बाप का अपने बच्चो के साथ होता है उसको कोई शब्दों में कोई नहीं बता सकता है ।

 वैसे जीवन अनमोल है पर सरकार कुछ रुपए मुआवजा देके उनका दुःख पूरा ख़त्म कर देती है।हमारे राजनेता भी तो माता पिता होंगे पर शायद हमारे राजनेता अपने बच्चो को ही इंसान समझते होंगे । जो लोग विपक्ष  में होते है वो  मंत्रियो का इस्तीफा मंगाते है।लाख के जगह एक करोड़ का  मुआवजा देना चाहिए ऐसा बोलते है। सरकार क्या बोलेगी और विपक्ष क्या बोलेगा यह सब आम जनता बार बार देख चुकी है।

हमारे पास सरकारी या निजी सुविधाएं अलग-अलग  हैं। हमारे प्रत्येक क्षेत्र में यही स्थिति है। सरकारी प्रणाली आम लोगों के लिए है, आम लोग बड़ी संख्या में हैं और मूल रूप से वे गरीब या मध्यम वर्ग के हैं।  इसलिए वे निजी सुविधाओं का लाभ नहीं उठा सकते हैं। 

निजी सुविधाएं आम तौर पर अमीर लोगो के ही बस की बात है। लेकिन जब सरकारी नौकरियों और निजी नौकरियों की बात आती है, तो हर कोई सरकारी नौकरी चाहता है। सरकार के मंत्री पद के लिए भी  राजनेताओं के बीच बहुत प्रतिस्पर्धा होती हैं। लोग केवल सरकारी स्कूलों, सरकारी अस्पतालों या सरकारी योजनाओं में पीड़ित हैं।

हमारे देश में दो तरह के वर्ग है। एक वो जो सरकारी सुविधाओं के भरोसे रहता है और दूसरा जो निजी सुविधाएं खरीद सकता है। निजी और सरकारी सुविधाओं में जमीन आसमान का अंतर होता है।

 देश में  एक बड़ा वर्ग  सरकारी सुविधाओं के भरोसे रहता है। वही  निजी सुविधाएं  सब के बस की बात नहीं होती है। किन्तु लोग अच्छी सुविधाओं के लिए अपना सब कुछ निजी अस्पताल में खर्च कर देते है। सरकारी अस्पताल में जो गरीब है वही जाता है। इसलिए उनकी सुविधाओं के तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता है।

सरकारी अस्पताल  बनाने में काफी समय लग जाता है। और बिना सुविधाओं के चालू भी कर दिया जाता है। सरकारी अस्पताल में डॉक्टर्स भी सुविधाओं के आभाव में हात खड़े कर देते है। सरकारी डॉक्टर्स बार बार सरकार को बताते रहते है की उन्हें क्या चाहिए पर सरकार उन्हें उतना महत्वपूर्ण नहीं समझती है। क्योंकि उन्हें तो कभी भी सरकारी अस्पताल जाना नहीं है। 

जब की निजी अस्पताल ये बहुत जल्दी बन जाते है। कुछ निजी अस्पताल तो इन्ही सरकारी राजनेताओ के होते है। ऐसे निजी अस्पताल में सभी सुख सुविधाएं होती है। भंडारा जिल्हा अस्पताल में SNCU  वर्ष २०१५ से बना हुआ है। पर उसमे सुरक्षा व्ययस्था नहीं है। या तो  SNCU नहीं बनाते ,या बनाना है तो पूरी सुविधा और सुरक्षा के साथ बनाते ,तो आज ऐसा हादसा नहीं हो पता। 

कोरोना महामारी के वजह से सभी लोग अति सुरक्षा अपना रहे है। ऐसे वक़्त में इस तरह की भूल हो जाना ये निंदनीय है। इस हादसे के लिए कोण जिम्मेदार है ?क्या लगता है आप सभी को। क्यों ऐसी परिस्थिति राज्य में बहुसंख्य  सरकारी अस्पताल की है ?सरकार और विपक्ष  इन दोनों को इस बात की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। ऐसा हादसा फिर से ना  हो इसलिए सभी ने मिल के प्रयास करने चाहिए।