By Naren Narole
इस ब्लॉग में जो भी लिखा है यह किसी व्यक्ति विशेष ,जाती धर्म या किसी राजनितिक दल के विरुद्ध नहीं है। यह मुख्यतः हमारे भारतीय नागरिक को आने वाले प्रश्न है जो सभी देशवासियो को हमेशा से झकझोरकर रखते है। वही प्रश्न जो की विधान परिषद् के पदवीधर मतदार संघ के चुनाव के समय हमेशा हमारे मन में आता है ,वही हमने यहाँ उठाये है। यहाँ दी गयी जानकारी और विशेषतः जो आंकड़े दिए है वो विकिपेडिया और इंटरनेट सर्च से ही दिए गए है। अगर किसी की भी, किसी भी तरह से, भावना आहात हुई होगी तो हम क्षमाप्रार्थी है। जो इस ब्लॉग पेज का मुख्य प्रश्न पढ़ना चाहता है उन्हें वो शुरुआत के अंश में मिल जायेगा ,जिन्हे राज्य की विधानसभा और विधान परिषद् के बारे में पता ना हो ऐसे कृपया पूरा ब्लॉग पढ़े। धन्यवाद। ……
Can Graduate Constituency Election- 2020 ,Nagpur solve the problem of youth…..
स्नातक निर्वाचन क्षेत्र (०३/०७ )??
स्नातक या पदवीधर मतदान संघ चुनाव नागपुर में हर ६ साल बाद होता रहता है। किसी ने भी इस निर्वाचन क्षेत्र से आना ,इसे हमेशा बैक डोर एंट्री मतलब पीछे के दरवाजे से राजनीती में आना ,ऐसी आम लोगो की धारणा बनी हुई है। नाम से ही काम का पता चलता है ,की जो भी पदवीधर मतदार संघ से विधान परिषद् में जायेगा वो पदवीधर लोगो की बात सरकार के सामने रखेगा और पदवीधर को जो कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है उसमे सुधार लाने की कोशिश करेगा। सुशिक्षित लोगो का भविष्य इस देश में उज्वल होगा इस बात को सुनिचित्त करेगा।
शायद कुछ ज्यादा ही मांग रहा हूँ ऐसा लग रहा है। हम यहाँ किसी की बुराई कर रहे है ऐसा कुछ नहीं है ,पर ७० साल के बाद भी कुछ बड़े बदलाव आने चाहिए थे जो की नहीं आये है। सुधार के लिए समय लगता है पर कितना समय यह प्रश्न है। हमारा सिस्टम इतना धीमा क्यों है। अभी तक किसी के भी चुन कर आने पर कोई बढ़ा सुधार नहीं आया है।जैसे ही लोग चुनाव जीत जाते है वो भूल ही जाते है की वो पदवीधर मतदार संघ से है ,और अपनी वैक्तिगत राजनीती में लग जाते है की कैसे अगली बार विधानसभा या लोकसभा का टिकट मिल जाए ।
परिस्थिति या हालात सुधर सकते है अगर कोई राजनीती से हटकर स्नातक या पदवीधर के बारे में सोचने वाला शख्स इस चुनाव में खड़े हो पाता। चुनाव में खड़े भी बहुत लोग होते है ,पर सब लोगो की नजर राष्ट्रीय राजनितिक पार्टियों के तरफ ही लगी रहती है। बड़ी राजनितिक पार्टी में ऐसे लोग मिल पाए इसकी संभावना कम होती है। उनके यहाँ जो विधानसभा या कोई और चुनाव हार गये हो उनका हक़ पहले बनता है क्योकि उन्हें चुनाव के तोर तरीके पता होते है। तोर तरीके का मतलब आप लोग तो समझ ही गए होंगे ,उतने तो आप समझदार हो।
अब बदलाव चाहिए। दिल्ली के मुख्यमंत्री श्री अरविंद केजरीवाल को ही देख लीजिये थोड़ा बदलाव तो लाये है। मुख्य राजनितिक पार्टियों को सोचने पे मजबूर किया है। हमारे देश के प्रिय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी भी एक बदलाव का नतीजा है। वैसा ही कुछ बदलाव चाहते हो तो सभी पदवीधर मतदार सोच समझ कर इस चुनाव में वोट करो और ऐसे प्रत्याशी को चुन कर लाओ जो रोजमर्रा की राजनीती को छोड़कर हमारी समस्याओ का समाधान निकाल पाए।
हमारा भारत देश एक संघीय राष्ट्र है जो की २८ राज्य और ८ केंद्र शासित प्रदेश से बना हुआ है। हमारे यहाँ राज्य को एकसदनीय और द्विसदनीय राज्य विधायिका बनाने की सुविधा हमारे सविंधान में दिया गया है।द्विसदनीय राज्य विधायिका उसे कहा जाता है जहा विधानसभा और विधानपरिषद दोनों होते है वही एक सदनीय विधायिका में सिर्फ विधानसभा ही होती है।
जनवरी २०२० तक महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, बिहार, आंध्रप्रदेश और तेलंगणा इन ६ राज्यों में द्विसदनीय राज्य विधायिका है और बाकि राज्यों में एकसदनीय विधायिका है। द्विसदनीय राज्य विधायिका में विधानपरिषद को उच्च सदन और विधान सभा को निचला सदन कहा जाता है। इसकी स्थापना भारत के संविधान के अनुच्छेद १६९ में परिभाषित की गई है।
संविधान के अनुच्छेद १६९ (१) के अनुसार, यदि राज्य के विधान सभा के अधिकांश सदस्यों द्वारा या दो-तिहाई सदस्यों की उपस्थिति में विधान परिषद के लिए प्रस्ताव पारित किया जाता है तो भारत की संसद राज्य में विधान परिषद की स्थापना करती है। संविधान विधान परिषद के सदस्यों की संख्या निर्दिष्ट नहीं करता है।
धारा १७१ के अनुसार, विधान परिषद में विधान सभा के कुल सदस्यों के कम से कम ४० सदस्य या विधानसभा के एक तिहाई से अधिक सदस्य नहीं होते हैं। ये सदस्य विधान परिषद के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव करते हैं।यद्यपि विधान परिषद को उच्च सदन कहा जाता है,पर व्यवहार में यह निम्न सदन है। इस सदन का सभी मामलों में विधान सभा से कम अधिकार होते है।
राज्य विधानसभा में जो लोग राज्य का चुनाव जीत कर आते है उन्हें विधायक ( विधान सभा के सदस्य -MLA – Members of Legislative Assembly ) कहा जाता है और जो लोग राज्य विधान परिषद में आते है उन्हें एमएलसी ( विधान परिषद के सदस्य-MLC – Members of Legislative Council )कहा जाता है|
विधान परिषद -योग्यता और कार्यकाल
विधान परिषद सदस्य ,एमएलसी बनने के लिए वह भारत का नागरिक होना चाहिए,उसकी ऊम्र कम से कम ३० साल होनी चाहिए , मानसिक रूप से मजबूत, दिवालिया नहीं होना चाहिए और उस राज्य की मतदाता सूची में नामांकित होना चाहिए जिसके लिए वह चुनाव लड़ रहा है। वह एक ही समय में संसद सदस्य और राज्य विधान सभा का सदस्य नहीं हो सकता है।
विधान परिषद के सदस्य ,एमएलसी का कार्यकाल छह साल का होता है।भारत की संसद के ऊपरी सदन, राज्यसभा के समान ही विधान परिषद के एक तिहाई सदस्य हर दो साल के बाद सेवानिवृत्त होते हैं।
विधान परिषद के सदस्य ,एमएलसी को निम्नलिखित तरीके से चुना जाता है:
एक तिहाई (१/३) सदस्य ,राज्य विधान सभा के सदस्यों द्वारा उन लोगों में से चुने जाते हैं जो राज्य विधान सभा के सदस्य नहीं हैं।
एक तिहाई (१/३) सदस्य ,स्थानीय निकायों जैसे नगर पालिकाओं, ग्राम पंचायतों, पंचायत समितियों और जिला परिषदों के सदस्यों द्वारा चुने जाते हैं।
एक छठे (१/६) सदस्य ,को राज्यपाल द्वारा साहित्य, विज्ञान, कला, सहकारी आंदोलन और सामाजिक सेवाओं जैसे क्षेत्रों में ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव वाले व्यक्तियों द्वारा नामित किया जाता है।
एक बारहवें (१/१२ ) सदस्य को उन लोगों द्वारा चुना जाता है जो उस राज्य में रहने वाले तीन वर्षीय स्नातक हैं।
एक बारहवें (१/१२ ) सदस्य को उन शिक्षकों द्वारा चुना जाता है, जिन्होंने राज्य के शिक्षण संस्थानों में कम से कम तीन साल अध्यापन में बिताया है, जो माध्यमिक विद्यालयों से कम नहीं है, जिसमें कॉलेज और विश्वविद्यालय शामिल हैं।
विधान परिषद -भूमिका
भारतीय संविधान विधान परिषद को सीमित शक्ति देता है। विधान परिषद राज्य सरकार को न तो बना सकती है और न ही तोड़ सकती है। वित्त विधेयकों के पारित होने में विधान परिषद की भी कोई भूमिका नहीं है। लेकिन इसकी कुछ शक्तियां यह हैं कि राज्य विधान परिषद के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष राज्य में कैबिनेट मंत्रियों के समान दर्जा का आनंद लेते हैं।
राज्य विधान परिषद का निर्माण और उन्मूलन
भारतीय संविधान के अनुच्छेद १६९ के अनुसार, भारतीय संसद किसी राज्य की राज्य विधान परिषद को बना या समाप्त कर सकती है यदि उस राज्य का विधान विशेष बहुमत से उसके लिए प्रस्ताव पारित करता है। आजादी के बाद से कई विधान परिषदें समाप्त कर दी गईं। उदाहरण के लिए, १९६९ में पश्चिम बंगाल विधान परिषद को समाप्त कर दिया गया था। दूसरा उदाहरण आंध्र प्रदेश विधान परिषद का है जिसे १९८५ में समाप्त कर दिया गया था, लेकिन २००७ में फिर से गठित किया गया था।
राज्य जहा विधान परिषदों को समाप्त कर दिया
एक राज्य विधान परिषद के अस्तित्व ने राजनीतिक रूप से विवादास्पद साबित कर दिया है। कई राज्यों ने अपनी विधान परिषद को समाप्त कर दिया है और बाद में इसकी पुनः स्थापना का अनुरोध किया है; इसके विपरीत, राज्य के लिए विधान परिषद की पुन: स्थापना के प्रस्ताव भी विपक्ष से मिले हैं। किसी राज्य की विधान परिषद के उन्मूलन या पुन: स्थापना के प्रस्तावों को भारत की संसद द्वारा पुष्टि की आवश्यकता होती है।
राज्य विधान परिषद | जम्मू और कश्मीर विधान परिषद | मध्य प्रदेश विधान परिषद | पंजाब विधान परिषद | तमिलनाडु विधान परिषद | पश्चिम बंगाल विधान परिषद | असम विधान परिषद |
स्थापना वर्ष | 1957 | 1956 | 1956 | 1956 | 1952 | 1935 |
उन्मूलन वर्ष | 2019 | 1969 | 1969 | 1986 | 1969 | 1969 |
आलोचना
विधान परिषद ,राज्य सरकार को न तो बना सकती है और न ही तोड़ सकती है। वित्त विधेयकों के पारित होने में विधान परिषद की भी कोई भूमिका नहीं है। फिर भी अलग अलग क्षेत्र के विधायक बन के सारी सुख सुविधाएं प्राप्त करना ये लोगो को हिसाब से अनावश्यक होने के कारण विधान परिषदों की आलोचना की जाती है। इसे राज्य के बजट पर बोझ माना जाता है और इसे पारित करने में देरी का कारण माना जाता है।
महाराष्ट्र विधान परिषद
महाराष्ट्र राज्य में विधानसभा की २८८ सदस्य संख्या और विधानपरिषद की ७८ सदस्य संख्या है।
विधानपरिषद की ७८ सदस्य का विभाजन निचे दिया है।
- ३० सदस्यों को विधान सभा के सदस्यों द्वारा चुना जाएगा
- ७ सदस्य महाराष्ट्र (मुंबई, अमरावती डिवीजन, नाशिक डिवीजन, औरंगाबाद डिवीजन, कोंकण डिवीजन, नागपुर डिवीजन और पुणे डिवीजन) के सात डिवीजनों से स्नातकों में से चुने जाते हैं।
- ७ सदस्य महाराष्ट्र (मुंबई, अमरावती डिवीजन, नाशिक डिवीजन, औरंगाबाद डिवीजन, कोंकण डिवीजन, नागपुर डिवीजन और पुणे डिवीजन) के सात डिवीजनों के शिक्षकों में से चुने जाते हैं।
- २२ सदस्य महाराष्ट्र के २१ मंडलों (मुंबई ( २ सीटें) और अहमदनगर, अकोला-सह-वाशिम-सह-बुलढाना, अमरावती, औरंगाबाद-सह-जालना, भंडारा- गोंदिया से २१ सीटों से महाराष्ट्र के स्थानीय निकायों में से चुने जाते हैं। , धुले-कम-नंदुरबार, जलगाँव, कोल्हापुर, मुंबई, नागपुर, नांदेड़, नाशिक, उस्मानाबाद-कम-लातूर-कम-बीड, परभनी-हिंगोली, पुणे, रायगढ़-सह-रत्नागिरी-सह-सिंधुदुर्ग, सांगली-कम-सतारा , सोलापुर, ठाणे-कम-पालघर, वर्धा-कम-चंद्रपुर-कम-गढ़चिरौली और यवतमाल)
- १२ सदस्यों को साहित्य, विज्ञान, कला, सहकारी आंदोलन और सामाजिक सेवाओं जैसे मामलों के संबंध में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव रखने वाले को राज्यपाल द्वारा नामित किया जाएगा।
महाराष्ट्र राज्य की अनेक राजनितिक पार्टियो से प्रमुख दल निचे दिए
- भारतीय जनता पार्टी –Bharatiya Janata party-BJP
- शिवसेना –Shiv Sena -SS
- राष्ट्रवादी कांग्रेस-National Congress Party -NCP
- कांग्रेस -Indian National Congress -INC
- पीसंट एंड वर्कर पार्टी -PWP
- राष्ट्रिय समाज पक्ष -RSP
- लोकभारती-LB
- निर्दलिय -IND
- रिक्त- VACANT
निर्वाचन क्षेत्र और सदस्य (78)
विधानसभा सदस्यों द्वारा निर्वाचित (30) सीटे
राजनितिक दल | BJP | SS | NCP | INC | PWP | RSP |
सीटे | 14 | 06 | 05 | 03 | 01 | 01 |
स्थानीय अधिकारियों के निर्वाचन क्षेत्र (22)
राजनितिक दल | BJP | SS | NCP | INC | IND | VACANT |
सीटे | 06 | 07 | 03 | 04 | 01 | 01 |
शिक्षकों के निर्वाचन क्षेत्र (7)
राजनितिक दल | BJP | SS | NCP | LB | PWP | VACANT |
सीटे | 01 | 01 | 01 | 01 | 01 | 02 |
स्नातक निर्वाचन क्षेत्र (7)
राजनितिक दल | BJP | SS | INC | VACANT |
सीटे | 02 | 01 | 01 | 03 |
राज्यपाल मनोनीत (12)
राजनितिक दल | VACANT |
सीटे | 12 |
स्नातक निर्वाचन क्षेत्र (०३/०७ )…..