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स्वतंत्र्य भारत में बेरोजगारी के प्रमुख कारण

By Naren Narole

स्वतंत्र्य भारत में बेरोजगारी के प्रमुख कारण

 

आझादी मिले ७० साल से ज्यादा  हो गए हैं पर अभी तक बेरोजगारी  की समस्या बनी हुई हैं। किताबो में पढ़ा था की भारत एक कृषिप्रधान देश है और देश का किसान हि राजा है। लेकिन किसान  कि दशा  एक गरीब कि जैसी बद्द्तर हो गयी है ,उसके जीवन का  कुछ् मूल्य हि नहि बचा है।  जिसे अन्नदाता कहते है वही आज भूक से मर रहा है।  उसे ऐसे देखा जाता है मानो वो क्यों जिन्दा है।

में यहाँ उन किसानो की बात नहीं कर रहा जो राजनीती में हो कर , करोडो की फसल खेत में उगाते है ताकि उन्हे इनकम टॅक्स में छूट मिल जाये  ,कुछ तो घर के गमलो में ही करोडो के आमदनी कर चुके है। 

यहाँ गौर करने की बात यह  है की ये लोग भारत की राजनीती में सालो से अपना योगदान दे रहे है ,पर ये लोग उनकी खेती करने की  नायाब तकनीक गरीब किसानो को नहीं बताते ,की कैसे इतने कम जगह में उन्होंने इतना धन खेतीबाड़ी  कर के कमाया है। 

अरे भाई ,पैसे की बात निकली तो मन भटक गया मेरा ,छोड़ो हम तो बेरोजगारी की बात कर रहे थे।

रोजगार और उद्योग किसी भी देश की आर्थिक विकास की नींव होती है। पराधीन होने के कारण देश की रचना यहाँ के लोगो को  गुलाम बनाने की बन गयी थी। आझादी मिली तो हम लोगो को एक मौका मिला था ,की जो कुछ अंग्रेज उनके स्वार्थ के लिये कर गए वो सुधारा जाए। 

 जैसे हमारा एजुकेशन सिस्टम हमें नौकर बनाने के लिए बनाया गया था उसे सुधार कर स्वरोज़गार प्रेरित बनाते। भारतवर्ष में भिन्न भिन्न प्रकार के लोग रहते है उनको एक करने के लिए कुछ विशेष प्रयोजन करना आवश्यक था। थोड़ा मुश्किल था पर किया जा सकता था।  

आझादी मिलने के बाद हमारा देश कई टुकड़ो में बटा हुवा था, जिसे मिला के एक राष्ट्र बनाया गया।  परन्तु विविधा पूर्ण राष्ट्र को एक करने के लिए एक राष्ट्र ,एक राष्ट्रभाषा और एक समान न्यायव्यवस्था का निर्माण करना चाहिए था।  जिसमे सभी को समान न्याय ,समान संधी समान शिक्षण और सब का विकास हो पाता। राज्य स्थर पर ,राष्ट्रीय स्थर पर की दूरिया धीरे धीरे मिट जाती और हम सब विविधता से भरा हुवा परन्तु एक राष्ट्र  सच में बना पाते। 

हमारे राजनेताओ को ये शायद मंजूर न था ,उन्होंने व्यवस्थित ढंग से हमें जाती धर्म उच्च वर्गिय और निम्न वर्गिय ऐसे कई घटको में बाट दिया ,और दिल से  एक राष्ट्र बनाने के प्रयास को विफल कर दिया। 

रोजगार और उद्योग किसी भी देश की आर्थिक विकास की नींव होती है। पराधीन होने के कारण देश की रचना यहाँ के लोगो को  गुलाम बनाने की बन गयी थी। आझादी मिली तो हम लोगो को एक मौका मिला था ,की जो कुछ अंग्रेज उनके स्वार्थ के लिये कर गए वो सुधारा जाए।  जैसे हमारा एजुकेशन सिस्टम हमें नौकर बनाने के लिए बनाया गया था उसे सुधार कर स्वरोज़गार प्रेरित बनाते। भारतवर्ष में भिन्न भिन्न प्रकार के लोग रहते है उनको एक करने के लिए कुछ विशेष प्रयोजन करना आवश्यक था। थोड़ा मुश्किल था पर किया जा सकता था।

 

राष्ट्रभाषा का ना होना।

राष्ट्रभाषा ना चुनने के कारण आज अंग्रेजी भाषा ही हमारी पर्यायी  राष्ट्रभाषा बन गयी है। यह भी जानबूझकर किया गया है।  अंग्रेजी भाषा के कारन करीब सत्तर प्रतिशत लोग राष्ट्रिय विकास में अपना सहयोग देनेसे वंचित हो गए। 

अपनी मातृभाषा में बात करनेपर लज्जित महसूस करते हे।  अंग्रेजी भाषा में बात न करने के कारण अपना आत्मविश्वास खो चुके है। 

हमारे देश में  बहुत  सारे लोग दूसरे देश से व्यापार करने  के लिए कही भाषा सीखते है जैसे की जर्मनी ,जापनीझ ,चायनीझ ,फ्रेंच ,स्पॅनिश ,रशियन ,कोरियन ईत्यादी,वैसे ही अगर हमारी राष्ट्रभाषा होती तो उन लोगो को  को हम से व्यापार करने  के लिए हमारी भाषा सीखनी पढ़ती।  

अंग्रेजी भाषा हमें दूसरे राष्ट्रोसे व्यापार में सहयोग प्रदान कराती है परन्तु राष्ट्र का  सार्वभौम विकास करने में देरी अवश्य कराती है। 

आज ये हालात है की संस्कृत भाषा का पुरे विश्व में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के लिए सबसे उपयुक्त भाषा का दर्जा मिल चूका है ,पर हमारे यहाँ जिस  भाषा में ,पुरातन काल से वेद उपनिषद् और  बहुत कुछ लिखा गया है ,जो भाषा हमारे यहाँ की सभी भाषाओ  की जननी मानी जाती है उसे हम  राष्ट्रभाषा नहीं बना पाए।यहाँ मुझे काफी उस्तुकता है ,यह जानने में की कौन  कौन विरोध करता।

हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने में विरोध हो सकता है पर संस्कृत भाषा के लिए शायद ही कोई विरोध होता। कोई करता तो भी पाकिस्तान बना दिया था ,वही जा के लोग रह लिए होते। 

और हमारे यहाँ तो सभी समुदाय में संस्कृत के विद्वान् है। अभी भी ज्यादा परसेंटेज संस्कृत भाषा के वजह से बढ़ जाते है, जिन शिक्षा बोर्ड में संस्कृत भाषा का विषय होता है।  

भारत तो गॉवो में बसता था ,लोगोको अंग्रेजी से तो ज्यादा  आसान ही रहता संस्कृत सीखना और बोलना।

विश्व में शायद हम ही अकेले लोग होंगे जिन्होंने आझादी के बाद भी अपने मुँह में गुलामी का फ़िल्टर बैठाये रखा। हम मन में कितना ही अपने मातृभाषा में बोले  या गर्व करे ,पर लोगो के सामने अंग्रेजी में बोलने के बाद ही पढ़ालिखा माना जाता है। 

जब की बाकि देश जैसे चीन ,जापान ,कोरिया,फ्रांस,जर्मनी ,रूस और बहुत सारे देश इन्होने अपनी भाषा को नहीं छोड़ा ,आज यह सभी देश हर मामले में हम से आगे है।

मुझे लगता है की संस्कृत भाषा सीखने में देशवासियो से ज्यादा हमारे राजनेताओं को ज्यादा परेशानी हुई  रहती। बहुत सारे राजनितिक  मसलो की फाइले या कागजात अंग्रेजी में होने कारन आम देशवासियो को पढ़ने का मन ही नहीं करता और शायद यही हमारे नेता लोग चाहते थे। .. 

अरे यार फिर से भटक गया ,हम तो बेरोजगारी की बात करने वाले थे।

धर्मआधारित समाज की बंदिशे होना।

रोजगार या उद्योग के सफल होने के लिए एक खुले समाज की जरूरत होती है।  अब ये खुला समाज क्या होगा ,खुला समाज माने ,जहा कुछ सोचने की ,कुछ नया  करने की आझादी हो।  

आझादी शब्द सुनते ही आपको  ऐसा तो नहीं आया मन में  की “हम को चाहिए आझादी, ये देश मांगे आझादी  “,वो वाली अलग आझादी है उनको ये आझादी  शब्द का अर्थ नहीं पता अभी तक। 

भारत में इतने धर्म है की एक को हा बोलो तो दूसरे को गलत लगता, फिर सोचने की ,या नया करने की आझादी कैसे मिलेगी।

ये धर्म क्या है ,क्यों बने ये कभी और बात करेंगे पर अगर देश को आगे बढ़ना है तो सभी धर्म के लोगो को एक होकर काम करना पड़ेगा।  सभी देशवासियो को एक करना है तो  सभी के लिए कायदे कानून एक ही बनाने पड़ेंगे ।  

सब के लिए समान कानून रहेगा तो कोई किसी पे ऊँगली नहीं उठा पायेगा।  जैसे ,ये हमारे यहाँ नहीं चलता , आप ऐसा  नहीं कर सकते ,हम बोलेंगे वैसा ही करना पड़ेगा। … 

सब के लिए एक कानून ,कानून के दायरे में रहो सब ठीक से रहेंगे। हमारे राजनेताओ को क्या सूझी की धर्म के हिसाब से भी कानून बनाने की ,देश का कोनसा भला कर के गए। फिर कोई एक नया धर्म बना लेगा जैसे ‘धर्मनिरपेक्ष’ और बोलेगा हमारा धर्म अलग है ,हमारे कानून भी अलग रहेंगे फिर?

नहीं नहीं पहले बहुसंख्य पर लगाते है फिर देखेंगे क्या परिणाम आते ,फिर सुधार करेंगे फिर अल्पसंख्यक्यों पर लगाएँगे ,अल्पसंख्यक नाराज हो जायेंगे अगर अभी सभी पर समान कानून लगाया तो ,क्यों उनको ये देश में रहना नहीं था क्या ,क्या वो देश की तरक्की नहीं चाहते थे क्या ,उन्हें फिर से कबीलों में रहना था क्या ,बातचीत कर के सब को स्वीकार्य कानून नहीं बना सकते थे क्या ? 

किसीने आगे का सोचा नहीं या सोचने की काबिलियत नहीं थी। जो कानून पचास साल पहले ठीक था वो आज भी सभी को स्विकार्य हो ऐसी भी बात नहीं है,वक़्त के साथ उनमे सुधार भी होना चाहिये ।

जिन लोगो को  ये सोचना था वो सब चले गए और लोग अभी भी झगड़ते रहे और इन्ही झगडो से यही राजनेताओ  के लोग और उनकी देखा देखि कई और राजनितिक परिवार  चुन चुन कर आते रहे। इस तरह  इन लोगो ने अपने परिवार के रोजगार की समस्या का निराकारण कर दिया।  हम झगड़ते रहे और रहेंगे तो कहा से रोजगार ,काहे का उद्योग?

जो  अशिक्षित या पिछड़े है उन्हें धर्म के नाम पर बिना मेहनत के  सुकी  रोटी दे के चौखट की रखवाली करने  वालो जैसे रखा ,वो कभी भी समज नहीँ पाए ऐसे धर्म का चश्मा उनके दिमाग पर लगा दिया,चश्मा तो आँखों पर लगाते  हैं ।

जो  समझधार  थे ,थोड़े बहुत शिक्षित थे  उन्हें डाट कर चौखट के बाहर कर दिया और अंदर आने के लिए खूब नियम ,खूब परीक्षाएं लगा दी ,की बेटा अंदर आना  है तो हमारी चापलूसी करनी पड़ेगी।  हमारे इशारे पर ही गर्दन हिलानी पड़ेगी नहीं तो रहो चौखट के बाहर। तब से लोग बाहर ही घूम रहे है।

सुना है कुछ होशियार लोग थे ,उन्हें पता चल गया की अब आझादी के बाद  ये देश में ये राजनेता लोग देशभक्ति की वाट लगाएंगे तो वो लोग  देश से ही निकल लिए ,और दूसरे देश जा के उस देश के भविष्यनिर्माण में हात लगा रहे है। में फिर से बहक गया शायद हम तो बेरोजगारी पर बात कर रहे थे।

राष्ट्र विकास के लिए मूलभूत सुविधाये ना होना। 

जीवन जीने के लिए अन्न ,वस्त्र और निवारा ये मुख्य जरूरते है पर ,राष्ट्र के प्रगति के लिए,लोगो के विकास के लिए , बिजली, पानी,  शिक्षा, स्वास्थ और परिवहन आदि की भी बहुत ज्यादा आवश्यकता होती है। 

आझादी मिलने के बाद भी अपने भारत जैसे कॄषिप्रधान देश में बहुत गाँव में बिजली, पानी,  शिक्षा, स्वास्थ और परिवहन की सुविधा नदारत है,फिर सत्ता किसी भी राजनितिक दल के पास हो ।

नब्बे प्रतिशत राजनितिक अपनी ही सेवा के उद्देश्य के साथ ही प्रवेश करते है और बचे हुए देशसेवक निचली से ले के ऊपरी सतह तक ऐसे फैले होते है की कभी आपस में मिल  ही नहीं पाते।

बिजली ,पानी  , शिक्षा ,स्वास्थ और परिवहन इनमे परिवहन ऐसी चीज है की अगर वो रहे तो बिजली पानी  शिक्षा और स्वास्थ  भी  सही जगह पुहच जायेगा ।  हम परिवहन सुविधा को बेहतर तब कहेंगे जब हमारे किसान अपने खेत में खुद के वाहन से जा पाए।

हमने देखा है की जब रास्ते बनते  है तो ही विकास उन्ही रास्तो से फलता फूलता है।

जिस जगह रास्तो का नेटवर्क होगा वहा बिजली पानी शिक्षा और स्वास्थ जल्दी ही पुहच पाएगा। इन्ही रास्तो को देखने के लिए गाँव से लोग शहर चले जाते हे ,और वापिस नहीं आना चाहते है। रस्ते ही होते है जो गावों में डॉक्टर ,इंजिनियर ,शिक्षकों और बहुत सारे एक्सपर्ट को आने से रोकते है।

अब राजनितिक लोग बोलेंगे की हमें तो गाँव से कुछ महसूल या टॅक्स  ही नहीं मिलता तो रास्ते कैसे बनाए ,अरे पहले आम की गुठली बोएंगे तभी तो  आगे चल के  आम मिलेंगे।  कुछ साल तो देने चाहिए थे ,सत्तर साल से ज्यादा वक़्त गुजर गया ,तब नहीं किया तो अब करना पड़ेगा।

कोरोना जैसी महामारी ने हमें जल्दी ही फिर से सोचने का अवसर दिया है। हमारा कृषिप्रधान देश है और कृषि ही वह क्षेत्र है जिसने अभी तक हमें आर्थिक मंदी से बचाया था। 

कृषि पूरक रोजगार और उद्योग और टेक्नोलॉजी हमें प्रगति के रस्ते पर अग्रसर बना सकती है। फिर से में शिक्षा ,बिजली ,पानी और स्वास्थ की बात करतें करतें  बेरोजगारी के मुद्दे से फिसल गया……

राष्ट्र विकास के लिए जरूरी राजनितिक महत्वकांशा का अभाव होना। 

हमारे लोकतांत्रिक  देश में रोजगार और उद्योग  ये तभी बढ़ सकते है  अगर वैसी राजनितिक महत्वाकांशा हो।

 ऐसी महत्वाकांशा हमारे  पूर्व पंतप्रधान श्री  लाल बहादुर शास्री जी  ने ही दिखाई थी,और उनका जय जवान ,जय किसान के नारे ने कुछ अलग  ही आग लगाई थी। पर शास्त्री  जी  और उनकी महत्वाकांशा को भी जल्दी ही ख़त्म कर दिया गया।

हमारे पडोसी देश पाकिस्तान को ही देख लीजिये,जहा ऐसी महत्वकांशा कभी देखि  ही नहीं गयी। जब पाकिस्तान का जन्म हुआ तो उसकी आर्थिक हालात हम से बहुत अच्छे थे। क्योंकि उन्हेँ  बहुत कुछ लूट कर ,बैठे बिठाये मिल गया था और हमारे देश के  राजनितिक लोगो ने  उनको उनका हिस्सा देने को लगाया पर देश के कर्ज पे हिस्सेदारी नहीं देने दी।तो कुल मिला के वहा के राजनितिक लोगो को अच्छा खासा खजाना मिल गया था । 

वहा  के जो लोग सत्ता पे काबिज रहे उनमें तो यह बात थी की जितना लूट सकते हो उतना देश को लूट लेते है ,और कुछ परेशानिया आएगी तो किसी और देश में  हमेशा के लिए चले जायेंगे। ऐसा अभी भी चालू हैं।

हमारे यहाँ भी राजनितिक लोग  ज्यादातर वैसे ही हैं। पर एक तो हमारा देश पकिस्तान से ज्यादा  क्षेत्रफल में बढ़ा है, और कुछ हमारे राजनितिक विरोधी दल भी सत्ता की चाहत रखते है तो थोड़ी देशभक्ति ज्यादा दिखानी पड़ती है।  

तो इन कारणों के वजह से हमारे यहाँ पाकिस्तान जैसे हालात होने के लिए करीब  करीब तीस साल ज्यादा लगेंगे। ओह में तो पाकिस्तान चला गया बेरोजगारी तो भारत मे ही रह गई।

एक बड़ा  सवाल  यह आता है की  क्या सच मैं राष्ट्रभाषा ,अनेक  धर्म ,समान कायदे  ,समान शिक्षण ,राजनीतिक ध्येय  ये सब बेरोजगारीसे  संबंधित है ?

सभी पढ़ने वालो से क्षमा चाहता हूँ,बेरोजगारी के बारे में हम  कभी किसी  और दिन बात कर लेंगे।