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Rise of Corona: Nature’s Warning,कोरोना का उदय: प्रकृति की चेतावनी

कोरोना का उदय: प्रकृति की चेतावनी ,Rise of Corona: Nature's Warning

By Naren Narole

इस ब्लॉग में जो भी लिखा है ,यह किसी व्यक्ति विशेष ,जाती धर्म या किसी राजनितिक दल के विरुद्ध नहीं है। यह मुख्यतः हम भारतीयों को आने वाले अनेक प्रश्नों में से ही एक प्रश्न है। जो सभी देशवासियो के मन या मस्तिष्क को  झकझोरकर रखता है। कोरोना जैसे वैश्विक महामारी ने हम सब लोगो को कैसे प्रकृति के साथ जीना चाहिए ये सिखाया था। सभी लोगो के प्रयास से अभी कोरोना के मरीज काफी कम हुए है। जो सुधार हम लोगो ने अपने जीवन में लाये थे वो धीरे धीरे गायब हो रहे है। जिससे फिर हम कोरोना जैसी बीमारी के गिरफ्त में आ सकते है। कोरोना जैसी बीमारियों से हम सभी कैसे बच सकते है उनके बारे में ये ब्लॉग लिखा है। अगर किसी की भी, किसी भी तरह से, भावना आहात हुई होगी,जो की हम नहीं करना चाहते है , तो हम इसके लिए क्षमाप्रार्थी है। 

Rise of Corona: Nature’s Warning

 

कोरोना का उदय: प्रकृति की चेतावनी

 

कोरोना जैसी वैश्विक महामारियों ने हमें जीवन के कुछ महत्वपूर्ण सबक सिखाए हैं। जैसे की सफाई , स्वच्छता, खुद की, अपने घरों की, अपने परिसर की, अपने देश की, हमारी धरती माँ की। 

हमारे प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय स्वच्छता मिशन के तहत जो भी कहा है कि हर किसी को हर जगह स्वच्छता बनाए रखना है, लेकिन कोरोना महामारी के  प्रकोप ने हमारे प्रधान मंत्री के संदेश की तुलना में  देश के लोगों पर अधिक प्रभाव डाला  है। 

ज्यादातर लोग अब इसके बारे में जागरूक हो गए हैं। लेकिन यहां ऐसा लगता है जैसे मैंने बहुत ज्यादा बोल दिया है।  जरूर लोग जागरूक हो गए थे, लेकिन जैसे-जैसे कोरोना के मरीज कम होते गए, लोगों के मन में कोरोना का डर भी कम होने लगा और अच्छी आदतें जो लोगो ने अपनाई थी ,अब धीरे-धीरे खत्म हो रही है।

लंबे समय तक अच्छी आदतों को बनाए रखना बहुत मुश्किल है। आदमी को अपनी मूल प्रकृति और आदतों में लौटने में देर नहीं लगती। हम भारतीयों को शायद ऐसी चीजों में महारत हासिल है। 

हमारे लोकतंत्र में, यह सुविधाजनक है कि कोई भी उस तरह से जी सकता है जैसा वह जीना चाहता है। अगर कुछ सख्त नियम बनाए जाते हैं तो ऐसा लगता है कि उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खतरे में है।

 जैसे घर के कचरे की प्लानिंग। शहर के ऊपरी वर्ग के आवासीय क्षेत्र में घर के नौकर कचरे का काम करते हैं, लेकिन मध्यम वर्ग और निम्न वर्ग के आवासीय क्षेत्र में, घर की महिलाएं यह सब काम सालों से करती आ रही हैं। 

हर कोई चाहता है कि स्वच्छता बनी रहे, लेकिन कुछ लोग केवल आंगन तक अपना घर देखते हैं। घरेलू कचरे को अपने घर से हटाकर दुसरो के  घर के किनारे सरका दिया जाता है। या उनके घर के पास जो भी खाली जगह है, वे उसे वहीं रख देते हैं।

 वे लोग स्थानीय नगरपालिकाओं के कचरा बीनने वाले वाहनों की प्रतीक्षा करने में भी सक्षम नहीं हैं, क्योंकि इन लोगों का कचरा डालने का समय स्थानीय नगरपालिका के कचरा उठाने वाले वाहनों  के साथ  मेल नहीं खा रहा है शायद ।

अगर आप उनसे कुछ सफाई के बारे में बात करते हैं, तो इन लोगों को गुस्सा आता है। और झगड़ने पर आमादा हो जाते हैं। यदि उनके जैसे कुछ ओर लोग  आसपास होंगे तो वे सभी आपके खिलाफ हो जाते हैं। 

आपको धमकी दी जाती है कि उन्हें ऐसा करने से न रोकें, अन्यथा, आपको इसके बुरे परिणाम भुगतने होंगे। यह आपको इस तरह से समझा जाता है कि ये लोग आपको महिलाओं से संबंधित आपराधिक मामलों में फंसा देंगे। 

आप उन्हें कितना समझाते हैं कि जो कचरा वे बाहर फेंक रहे हैं वह केवल गंदगी और बीमारियों को बढ़ाएगा। जो सभी के स्वास्थ्य को प्रभावित करेगा। लेकिन उनके घर का स्वार्थपूर्ण स्वच्छता मिशन जो बाहर गंदगी का स्रोत है, कभी नहीं बदलेगा।

यहां तक कि कोरोना महामारी की अवधि में, उन विशेष मानसिकता वाले लोगों को रोकना बहुत मुश्किल था। यदि आप उन्हें आस-पास के निवासी परिसर में कचरा जमा करने से रोकने की कोशिश करते हैं, उसी समय जैसा कि वे यह जानते हैं कि अन्य लोग भी अभी उनके कार्यों के खिलाफ होंगे, इसलिए उन्होंने लोगों के जागने से पहले और लोगों के सोने के बाद अपने घर की सफाई के अपने मिशन को पूरा करने का कार्य किया।

 कोरोना या अन्य बीमारियाँ तभी प्रतिबंधित होंगी जब हम सभी अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी लेंगे। हम सभी अपने अच्छे व्यवहार से, कोरोना से बचने का संदेश दे सकते हैं। अगर हम नियमों का पालन नहीं करते हैं तो हम अपने बच्चों या बाकी सभी से नियमों का पालन करने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं? आखिरकार, वे केवल हमसे ही सीखते हैं।

कुछ दुकानदारों ने अभी मास्क लगाना बंद कर दिया है।  वे पहले की तरह सफाई का ध्यान नहीं रख रहे हैं। जैसे कि वे अब निश्चित हैं कि कोरोना जैसी अन्य बीमारियाँ फिर से नहीं आएंगी। सब कुछ पूरी तरह से ठीक हो गया है। उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया है।

 इसलिए हमें ऐसी जगह से कुछ न खरीदकर शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन करना चाहिए। जब तक हम ऐसा नहीं करते हैं, तब तक हम खुद को कोरोना जैसी कई अन्य बीमारियों के लिए आमंत्रित कर रहे हैं। कोरोना जैसी कुछ अन्य बीमारियाँ आने वाले दिनों में हम सभी से  मिलने वाली हैं। हम, मनुष्यों ने इस आपदा को जन्म  दिया  है , और हमारी वर्तमान गतिविधियाँ इसे आगे बढ़ावा देने जा रही हैं।

प्रकृति हमेशा खुद को बदलती रहती है, लेकिन वे बदलाव बहुत ही क्षणिक होते हैं। यदि कुछ नया निर्माण हो रहा है, तो कुछ उसी पल  नष्ट भी होता  रहता है। हम सभी  ऐसे क्षणिक  प्राकृतिक परिवर्तनों से अप्रभावित हैं। 

जब ये बदलाव अपना गहरा पक्ष दिखाते हैं, तभी हमें एहसास होता है । हम इंसान भी अपना स्वार्थी काम निरंतर करते रहते हैं। हमें महसूस नहीं होता है कि हमारा अधिकतम  काम प्रकृति के खिलाफ है। हर काम की अपनी सीमाएं भी होती हैं।

 जिस प्रकार हम अधिक सुख और अधिक दुःख सहन नहीं कर सकते, उसी प्रकार प्रकृति भी कितना सहन कर सकती है। अंतत: तब प्रकृति को अपना स्वयं का सफाई अभियान (ऑटो क्लीनिंग मोड) चलाना पड़ता है, और प्रकृति  खुद को पहले के रूप लेकर आ जाती है।

अब तक हम गंदगी, अस्वच्छता की बात कर रहे थे। शुरू से ही हम जानते हैं कि कचरा हमारे हर घर से निकलता है, फिर हमने अपने स्तर पर कचरा प्रबंधन के लिए कुछ क्यों नहीं किया। 

हम सभी समस्याओं के लिए सरकार की ओर नहीं देख सकते। यह सोचना पूरी तरह से गलत है कि यह सरकार की जिम्मेदारी है और उनके पास कचरा प्रबंधन के लिए एक योजना होगी। 

अगर हमारे शहर के नगर निगम ने कचरे के उचित नियोजन के लिए गीला और सूखा कचरा अलग-अलग से मांगा है, तो वैसे देने के बजाय हम कचरा इकट्ठा करने वाले लोगों से  ही झगड़ा करते रहते हैं। जब की इस समस्या के हल के लिए  हम अपने घर से कम से कम  कचरा बाहर निकालने के लिए कुछ प्रयास कर सकते थे। 

उदाहरण के लिए, यदि फल, सब्जियां, पेड़ के पत्ते, कागज, और जो मिट्टी रोज एकत्र की जाती है, उन्हें घर पर अलग से संग्रहीत किया जाता है, तो हम घर के बगीचे के लिए उर्वरक प्राप्त कर सकते हैं। अगर हम अलग-अलग फलों के छिलकों को स्टोर करते हैं, तो हम उनसे कई तरह के खाद बना सकते हैं। इसके कारण आसपास के पेड़ जहां आप रहते हैं, वह पोषण पा सकते हैं।

 आप चाहें तो घर पर ही खाद से सब्जियां और फूल उगा सकते हैं। आप प्रकृति को अपने करीब ला सकते हैं, जो बहुत दूर चली गई है। अब उसके बाद भी  जो भी कचरा बचा है, जिसे हम अपने स्तर पर संसाधित नहीं कर सकते हैं, उसे निर्धारित कचरे के डिब्बे में  ,या कचरा वाहनों में अलग से डालने की जिम्मेदारी  हमें वहन करनी चाहिए।

हमारे जनप्रतिनिधियों की आंखें तभी खुलती हैं, जब सरकार शहरों के लिए स्वच्छता सर्वेक्षण करती है। उस समय वे  सभी अपने दैनिक स्वार्थ के काम छोड़कर एक कैमरा लेते हैं और सफाई के लिए बाहर निकल जाते हैं। यह सिर्फ एक प्रचार स्टंट होता है।  जैसे ही स्वच्छता सर्वेक्षण समाप्त हो जाता है, ये लोग फिर से अपने पिछले दैनिक कार्य पर लौट आते हैं। कहीं भी, किसी भी परिसर में, जनप्रतिनिधि या उनसे जुड़े लोग स्वच्छता का निरीक्षण करते नहीं देखे जाते हैं।

 जनप्रतिनिधि केवल चुनाव से पहले प्रचार में और सिर्फ चुनाव की विजयी यात्रा में दिखाई देता है। लोगो के पास उन्ही जनप्रतिनिधियों को ही अगले  चुनाव में चुनने के अलावा कोई ओर विकल्प नहीं होता है।

कोरोना अवधि में, सभी लोग अधिक जागरूक हो गए। कोरोना के डर से लोगों ने बाहर खाना बंद कर दिया था। सभी घर का बना खाना खा रहे थे। हर कोई खाद्य पदार्थों को अच्छी तरह से धोने के बाद ही उनका उपयोग कर रहा था। लोगों को जिनके ऊपर विश्वास था , उन्हीं से खाने की चीजों की  खरीदारी की जा रही थी ,मतलब जो सभी सरकारी नियम का पालन कर रहे थे उन्ही से खरीदारी की जा रही थी । 

सब लोग मिलकर काम कर रहे थे। कोरोना संक्रमण से खुद को बचाने के लिए लोग यह सब कर रहे थे। लेकिन जैसे ही कोरोना का डर कम हुआ, लोगों ने बाहर खाना खाना शुरू कर दिया और परिवार के सदस्यों को अनदेखा कर दिया। बाहर भोजन करना कोई समस्या नहीं है, लेकिन आप जो खा रहे हैं वह आपके स्वास्थ्य के लिए अच्छा है या नहीं फिर भी नहीं देखा जा रहा है।

हम सभी चाहते हैं कि हमारे पास एक अच्छा महँगा घर हो, अच्छे ब्रांडेड कपड़े हों, महँगी सुविधाएँ हों सुंदर ,सेहतमंद ,मजबूत  शरीर हो।  लेकिन उस शरीर को,मजबूत और स्वस्थ रखने के लिए, हम आवश्यक पोषण देना भूल जाते हैं।

 जब भी लोग भोजन से संबंधित कुछ भी लेते हैं, तो वे इसे सबसे सस्ती दर पर प्राप्त करने का प्रयास करते है  और केवल उसके बाहरी रूप और रंग को देखते हुए खरीदारी करते है। लोग इस बात पर विचार नहीं करते  है की  उन वस्तुओं को कहां और कैसे लाया गया है। उन्हें  कहां उगाया गया है। उनमें कितना कृत्रिम रसायन दिया गया है।  चाहे वे कचरे में उगाए गए हों, या गंदे नाले के पानी से उनकी सिंचाई की गई हो।

 केवल दो चीजें जो हम मानते हैं कि, वे दिखने में अच्छी और कम कीमत में होनी चाहिए। हम अपने शरीर को कई वर्षों से दूषित भोजन को एक धीमे जहर की तरह देते हैं। फिर बाद में यह विषाक्त घटक हमारे शरीर में जमा हो जाता है। हमें कई बीमारियां देता है। 

यह सब बहुत जल्दी नहीं होता है, इसमें बहुत समय लगता है। लेकिन जब हमें पता चलता है ,तब  समय हाथ से निकल चूका होता है। फिर कृत्रिम रसायनों के कारण हमारे शरीर में जो कुछ भी हुआ है, उसे ठीक करने के लिए, हम विभिन्न कृत्रिम रसायनों से बनी  दवाएं लेते हैं जो प्राकृतिक या नैसर्गिक  नहीं होती हैं। 

इस तरह से  हमारा शरीर एक रसायन से दूसरे रासायनिक प्रक्रिया  के लिए हम खुद ही दे देते है । साथ में  हमारी जीवन भर की जो भी जमापूंजी है उसे भी हमारा जीवन बचने के लिए  देना पड़ता है। 

बिना धन के हम कैसे जियेंगे और  ऐसे ही हमारा जीवन भगवान् द्वारा पूर्व निर्धारित समय से पहले ही ख़त्म हो जाता है। इसका एक समाधान है कि अगर हम ब्रांडेड सुख सुविधा के साथ अपने खाद्यान्य  पर  भी थोड़ा विशेष ध्यान दें, तो हम सभी जीवन की हानि से बच सकते हैं।

 

सभी लोगों को प्राकृतिक प्रक्रिया द्वारा उगाए गए खाद्यान्नों को प्राथमिकता देनी चाहिए। केवल उनसे ही खाद्यान्य की खरीदारी करे जिन पर आप पूरी तरह से विश्वास करते हो।

 यदि आपके पास जमीन है, तो पूरी तरह से प्राकृतिक खेती ही  करें। अपने और दूसरों के लिए प्राकृतिक खाद्यान्य का निर्माण करे। कुछ लोग अपने घर के बागीचो में या छत  पर थोड़ा खर्च  करके  प्राकृतिक खेती से फल और सब्जियां उगा सकते हैं। 

यहां मैं सभी प्रकार के फलों और सब्जियों के बारे में बात कर रहा हूं, जो केवल हमारे देश के किसान ही हमें दे सकते हैं। इतने सालों तक किसानों को अपनी पुरानी खेती की प्रक्रिया को छोड़ने और रासायनिक उर्वरकों का उपयोग करने के लिए दिए गए जोर से अब हमारी जमीन में उपज कम हो गई है या खो गई है। 

अपनी मिट्टी को दोबारा पुनःजीवित करने के लिए हमें प्राकृतिक खेती करनी होगी। फिर से प्राकृतिक खेती में आने पर, हमारे किसान देवता को अधिक समय लगेगा और शुरुआत में उपज भी  कम होगी, जिससे हमें थोड़ा अधिक खर्च  वहन करना होगा।  लेकिन जैसे-जैसे प्राकृतिक प्रक्रिया जारी रहेगी, मिट्टी की पैदावार भी बढ़ेगी और सभी का विकास होगा हमें उचित मूल्य पर रसायन मुक्त प्राकृतिक खाद्यान्य  मिलेंगे।

कोरोना जैसी महामारी का अभी तक कोई भी इलाज नहीं हासिल किया गया है। हर कोई जानता है कि अगर उनकी खुद की प्रतिरक्षा शक्ति बेहतर है, तो केवल वही व्यक्ति ऐसी बीमारियों से बच पाएगा। हमारे शरीर की प्रतिरक्षा शक्ति रासायनिक आधारित भोजन से लगातार घटती जाती है। इसीलिए प्राकृतिक भोजन ओर प्राकृतिक जीवन शैली ,जिसे जानबूझकर हमारे देश के लोगो से दूर किया गया है, उसे फिर से अपनाना होगा ।

 प्राकृतिक और आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणालियों का पालन करें। यह न केवल आपको  बीमार होने  से बचता है  बल्कि ,भले ही आप बीमार हों जाए तो आपका शरीर प्राकृतिक और आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणालियों की  मदद से पूरी तरह से ठीक हो सकता है। 

एलोपैथी दवाए  जो रसायनों का एक संयोजन है, आपातकालीन चिकित्सा पद्धति है जो तत्काल उपचार के लिए है। जिसका उपयोग परिस्थिति के अनुसार किया जाना चाहिए। अगर किसी को दुर्घटनाओं में चोट लगती है, तो हमें शुरुआत में एलोपैथी दवाओं का उपयोग करना होगा न कि प्राकृतिक या आयुर्वेदिक दवाओं का।

हमें इस अंतर को समझना होगा कि हम प्राकृतिक और आयुर्वेदिक दवाओं का उपयोग करके बीमारियों से बच सकते हैं। अगर हम बीमार नहीं होते हैं, तो हमें एलोपैथी या रासायनिक दवाओं का उपयोग नहीं करना पड़ेगा। 

हमारा देश और हमारी जनसँख्या पूरी दुनिया के लिए एक बहुत बड़ा बाजार है और उसी बाजार को बढ़ाने के लिए हमारे देश में रासायनिक खेती को बढ़ावा दिया गया ताकि भविष्य में हम अपनी जमापूंजी  एलोपैथिक रासायनिक दवाओं पर खर्च करें। 

आज, हमारी आबादी के अनुसार, कोरोना जैसी मानव निर्मित महामारी दुनिया के कुछ लोगों को भगवान कुबेर का रिश्तेदार बना देगी।  और यह सब तब होगा जब हम कृत्रिम रासायनिक पदार्थों का अधिक से अधिक उपयोग करेंगे। 

पहले, बमों को कृत्रिम रसायनों के साथ बनाया जाता था, जो लोगों को मारते थे, अब उर्वरक और दवाएं उसी रसायनों के साथ बनाई जाती हैं, जिसके कारण लोग धीरे-धीरे मर जाते हैं और कोई नहीं जानता कि वे क्यों मर रहे हैं।

कोरोना जैसी महामारी हमारे जीवन में आई , जिसका प्रमुख कारन है की प्रकृति चाहती है की हम लोग प्रकृति को समझे। हम लोगो ने अपने जीवन में आवश्यक बदलाव लाने चाहिए जिससे पूरी दुनिया ,दुनिया में रहने वाले सभी घटक ख़ुशी से रह सके ।

 हमें उन अच्छे बदलावों  को अपने जीवन का मुख्य अंश बनानां चाहिए, बजाय इसके  की फिर से किसी नई आपत्ति को हम आमंत्रित करे।  जो कुछ भी हमारे घर के काम हैं, उन्हें आपस में बांट लें, न कि अपने परिवार के किसी  एक ही सदस्यों को  घर काम के बोझ के नीचे दबाएं। 

सभी लोगों को समझना चाहिए कि जो काम पुरुष कर सकते है  ,वही काम महिलाओं द्वारा अच्छे से किया जाता है। इसी तरह, जो काम हमेशा महिलाओं के सिर  मढ़े जाते  है, वह पुरुषों द्वारा भी अच्छे से  किये  जा सकते  है। 

कोई भी काम हो वो लिंग के आधार पर नहीं दिया जाना चाहिए।  हमें एक-दूसरे को इंसान समझना होगा। अधिकतर  महिलाओं को इंसान नहीं माना जाता है।हम पहले तो उन्हें एक चीज ही समझते है। अब समानता के नाम पर  हम उन्हें एक मशीन की तरह मान रहे हैं। 

महिलाएं घर और ऑफिस दोनों जगह पूरा काम कर रही है। पर पुरुष घर के काम को छोटा समझते है जैसे की वह इन्हे वो कुछ मिनटों में ही कर सकते है। तो ऐसे लोगो की परीक्षा का समय आ गया है। वो घर पर ऑफिस के काम के साथ घर के भी काम कर के दिखाए। और खुद को साबित करे।

  कोरोना युग में, सभी लोग परिवार के सदस्यों के साथ समय बिताते थे, ज्यादा बाहर नहीं निकलते थे, वाहनों का कम इस्तेमाल होता था। जब प्रकृति को भी अकेले रहने का मौका मिला, तो प्रकृति का चेहरा फिर से निखरकर सामने आया। 

प्रदूषण का प्रमाण कम हुआ। सभी जानवर खुशी से रहने लगे। लोगों ने जीने को ज्यादा महत्व दिया। वर्कलोड, गला काट  प्रतियोगिता को हटाकर सभी के स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए प्रयास किए गए थे। सभी एक-दूसरे की मदद कर रहे थे।

 लेकिन यह लंबे समय तक नहीं रहेगा। हमारे भीतर का जंगली जानवर या शैतान फिर से जाग उठेगा। फिर से कुछ लोग अपने स्वार्थ के लिए लोगों का खून उनके तरीको से  पीएंगे। उनके पास ऐसा ही काम है, जो की उनके हातो से बाकी लोगो को धीरे-धीरे खत्म करें। ऐसे लोग दिखावा करते हैं कि वे लोग भी असहाय हैं। दूसरों को मारकर ही वे अच्छा जीवन जी सकते हैं। प्रकृति ऐसे लोगों को न्याय देगी। हमें सभी के लिए आशीर्वाद मांगना होगा।

आने वाला समय और कठिन होगा। प्रकृति ने एक महत्वपूर्ण संकेत दिया है। अगर हम अब भी परवाह नहीं करते हैं, तो प्रकृति अपने काल चक्र को फिर से चालू कर देगी और दुनिया को अपने प्रारंभिक रूप में वापस ले के आ जाएगी।

 अगर कालचक्र की गति को धीमी करनी हो तो ,अधिक से अधिक पेड़ लगाएं। जंगल में रहने वाले सभी वन्य जीवन को संभालना पड़ेगा। नए जंगलों का निर्माण करना होगा। प्रदूषण को नष्ट करना होगा वरना पूरे समुद्र में बाढ़ आ जाएगी, हिमखंड पिघल कर पानी में बदल जाएंगे। नदिया पहले उफान पर आ जाएंगी और बाद में वह सूख जाएगी क्यों कि उनके स्रोत समाप्त हो जाएंगे। पहले, बाढ़ कुछ मानव प्रजातियों को नष्ट कर देगी, बाद में सूखा शेष लोगों को मार देगा। और फिर, जंगल में बचे आदिवासी पत्थर से आग जलाएंगे । 

नया विश्व-निर्माण फिर से  होगा। भारत जैसा देश  फिर से उस नई दुनिया में  एक राष्ट्र बन जाएगा। भारत देश फिर से एक सोने की चिड़िया बन जाएगा। जहा कहीं  रेगिस्तान का निर्माण होगा, वहा से फिर  कुछ लोग धन, धान्य  के लालच में वापस भारत पर हल्ला बोलेंगे। 

फिर से  वही चक्र  शुरू होगा। हाँ, यह सब होगा, अगर हम नहीं सुधरे तो यह बहुत जल्दी हो सकता है।  या अगर हम सुधर गए तो हम इन बदलावों को और धीमा कर सकते हैं। हममें से ज्यादातर लोग सोचते हैं कि तब तक मैं नहीं रहूंगा, इसलिए मुझे वैसे ही रहना चाहिए जैसा मैं जीना चाहता हूं। लेकिन ऐसा नहीं है अगर आप अब परवाह नहीं करते हैं, तो आप अपने जीवन में विनाश के उस दिन को  जल्दी ही देखेंगे।